देवी अहिल्याबाई होल्कर, नारी शक्ति का एक प्रज्जवलित उदाहरण – सुमन कोचर

Date: August 13, 2024

Editor’s note: As the world witnesses the heart-wrenching attacks on Hindu temples in Bangladesh, it is time to recall a powerful statement of Sri Aurobindo – “…the creative activities of the Hindu revival have made Indian religion a living and evolving, a secure, triumphant and self-assertive power.” (CWSA, 20: 63).

To add more force to the power of renewal and new creation, we also invoke and remember a legendary queen of India who was a shining example of the force of rejuvenation and reconstruction. We are speaking of the great queen of Malwa, Devi Ahilyabai Holkar. Her numerous contributions to the rebuilding and revival of Hindu temples throughout the length and breadth of India — temples which had been brutally attacked by the invaders and rulers who believed Hinduism to be a false religion and mere idolatory — must be recalled at such times. Because it is important that we learn from history, invoke strength, stay on the path of Truth and Dharma and move forward with a renewed vigour to reassert and be triumphant.

The following is written by Ms. Suman Kochar, Chairperson of Sri Aurobindo Society, Indore.

उस परम शक्ति ने हर युग में, युग परिवर्तन, युग नवनिर्माण हेतु नारी को अपनी विशिष्ट शक्तियाँ, गुण, बल, सामर्थ्य देकर अपने निर्दिष्ट कार्य हेतु धरती पर अवतरित कराया। ईश्वर द्वारा चुनी हुई नारी ने भी अपने अंतर ज्ञान, भक्ति, कर्म – कौशल, बल, साहस तथा अंतरात्मा की आवाज पर जीवन जीते हुए, धरती के अशुभ, अमंगल, असत्य, अज्ञान, अंधकार की शक्तियों को पराजित करते हुए अपने ईश्वर प्रदत्त कर्म को धरती पर पूरी आस्था और विश्वास के साथ सम्पन्न किया।

इस तरह हर युग में नारी ने अपने शक्ति रूप तथा सर्वसमर्थ व्यक्तित्व का परिचय दिया। वह दुर्बल या अबला नहीं वरन् परम शक्तिशाली भगवती मां का रूप है। वह आज तक इसे सिद्ध करती आ रही है।

श्री मां ने कहा है “नारी के अंदर अलौकिक आध्यात्मिक शक्ति है। चैत्य शक्ति है। परमात्मा ने नारी को अतिविशिष्ट शक्ति प्रदान की है। वह है – उसकी विकसित अंतरात्मा । विकसित चैत्य पुरुष। यह उसके अंदर ईश्वर प्रदत्त क्षमता है। नारियों में यह शक्ति ज्यादा केंद्रित है। पुरुषों की अपेक्षा अधिक विकसित और समृद्ध शक्ति है। नारियाँ इसे अपने अंदर अभिव्यक्त करने में ज्यादा सक्षम और योग्य है। किंतु नारी अपने अंदर इस भागवत शक्ति की दिव्य क्षमता के प्रति सचेतन नहीं है। और इस क्षमता को उसने अपने अंदर उस सीमा तक अभिव्यक्त नहीं किया है जो उसे करना चाहिये या जो प्रत्येक नारी को करना है।

नारी अपने अंदर इस शक्ति को प्रार्थना, अभीप्सा और आव्हान द्वारा जागृत कर सकती है तथा समर्पण द्वारा विकसित और अभिव्यक्त कर, भागवत कार्य सम्पन्न कर सकती है।

इतिहास साक्षी है कि युग-युग में परमात्मा द्वारा चुनी हुई नारियाँ – कौशल्या, सीता, राधा, मीरा, अनुसूया, सावित्री, मैत्रेयी, जीजाबाई जैसे मानवी रूपों में धरती पर जन्म धारण कर आई और ईश्वर ने उन्हें जो भूमिका और कार्यशक्ति दी, ईश्वरीय यंत्र बनकर उन सबने उसे सुसम्पन्न किया। क्यों? क्योंकि ये सब नारियाँ अपने अंदर ईश्वरीय शक्ति के प्रति पूर्ण सचेतन थी और उन्हें भान था कि वे भगवान द्वारा उनके कार्य हेतु धरती पर उतारी गई है।

धरती पर एक ऐसी ही महायात्री नारी शक्ति – देवी अहिल्याबाई होल्कर आई। जिनकी 300 वीं जयंती पूरा भारत मना रहा हैं। उस देवी स्वरूपा के प्रति, उनकी गौरव गाथा के प्रति यही स‌म्मानजनक है कि उनके देहत्याग के बाद भी उनके नाम के आगे ‘देवी’ या ‘मां’ का सम्बोधन किया जाता है। प्रजा के लिये वे ‘देवी’ या ‘मां’ ही थी।

किंतु कोई उन्हें ‘देवी’ कहे, उनकी प्रशंसा या स्तुति करे, यह उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था। वे एक ही बात पसंद करती थी – धर्म आचरण करो। धर्म प्रचार करो। उसी की बात कहो और लिखो। धर्म विरुद्ध आचरण उन्हें बिल्कुल पसंद न था।

उनके लिये प्रजाहित सर्वोपरि था। उनका मानना था कि “जो सत्ता और सामर्थ्य, बल और साधना उन्हें प्राप्त है वे सब परमात्मा की इच्छा से है। और वे जो कुछ भी कर रही हैं, उसका जबाब उन्हें ईश्वर को देना हैं। और यहाँ जो कुछ भी है, प्रजा का ही है और मैं प्रजा से लेकर प्रजा को लौटा रही हूँ। यह बात प्रजा को पता नहीं, इसका मुझे खेद है। प्रजा समझती है कि मैं यह सब कर रही हूँ ।”  

वे अपने एक हाथ में शिवलिंग रखती थी और अपने को भगवान ‘शिव’ का यंत्र मानती थी। उनके बाल्य जीवन का एक बहुत प्रेरणादायी उदाहरण है – सन् 1733 में मात्र आठ वर्ष की बालिका अहिल्या का विवाह खांडेराव होल्कर के साथ हुआ। वे मल्हार राव होल्कर की‌ पुत्रवधू बनकर इन्दौर अपने ससुराल आई और यहीं से उनकी परिक्षा शुरु हो गई। किस्सा यूं था कि उनके समक्ष सोना, चांदी, जवाहरात कीमती आभूषण और अन्न सभी चीजें रखकर उनसे पूछा गया कि इनमें सबसे मूल्यवान क्या है?

प्रखर बुद्धिमान बालिका वधु अहिल्या ने सोना, चांदी, जवाहरात को मूल्यवान न बताकर अन्न को बहुमूल्य बताया।

आगे चलकर बचपन का यह दिव्य गुण उनके समस्त कार्यों तथा उनके राज्य प्रशासन में भी हमें देखने को मिलता है- किसानों को भू-दान करना, संरक्षण देना, भूमि सुधार के कार्य कर करना, मालगुजारी के लिये किसानों पर अनुचित दबाव न डालना और मालगुजारी, किसानों के शोषण का जरिया न बनें, इसका ध्यान रखना, उनके शासन का मुख्य कार्य आधार था।

देवी अहिल्या बाई के व्यक्तित्व में हमें दिव्य संस्कारों, दिव्य शिक्षा, धर्म, आत्मोत्थान, संस्कृति के प्रति प्रेम, जागरूकता ,रक्षा का भाव ,परोपकार, न्यायप्रियता, मानव उत्थान तथा मानव सेवा के कार्यों की एक लंबी श्रृंखला देखने को मिलती है। अभावग्रस्त, जरूरतमंदों और अपने राज्य के कामगारों के साथ-साथ उनके परिजनों की सभी जरूरतों और व्यवस्था का सदैव उन्हें पूरा ध्यान रहता था। यही उनका सच्चा मानव सेवा कर्म और धर्म था।

पति खांडेराव, ससुर मल्हाराव और पुत्र मालेराव होल्कर की मृत्यु के पश्चात् होलकर सूबे के दीवान गंगाधर यशवंत चंद्रचूड़ ने राघोबा से संधि कर ली। 1766 में दोनों ने मिलकर होल्कर परिवार की उस समय की 16 करोड़ रु. की संपत्ति हड़पने की साजिश की। अहिल्याबाई को इस साजिश का पता चल गया। दुश्मन के मंसूबे विफल करने के लिये उन्होंने सबसे पहले अपने राज्य के भेदिये दीवान गंगाधर को बंदी बनाया। और उसके बाद युद्धनीति के साथ कूटनीति का सहारा लिया।

उन्होंने महिलाओं की सेना तैयार की। महेश्वर की सभी महिलाओं को अपनी सेना में शामिल कर उन्हें युद्ध के दांव-पेच, कला-बाजियाँ, घुड़सवारी सिखाई। नारी सैन्य-संगठन को मजबूत बनाया।

जब पूणे के पेशवा माधवराव के चाचा राघोबा महेश्वर पर चढ़ाई करने की योजना बनाकर आये तो उन्होंने राघोबा को ललकारते हुए कहा – ‘मुझे केवल महिला ही मत समझना। जब मैं कंधे पर भाला लिये खड़ी होऊंगी, तो श्रीमंत आप मुश्किल में पड़ जायेंगें।’

राघोबा से युद्ध करने का प्रण लेकर वे महेश्वर से अपने सैन्य संगठन को लेकर निकल पड़ी। साथ ही राघोबा को अपना कठोर संदेश पहुंचाया — यदि उन्होंने होल्कर सूबे पर  हमला करने के लिये क्षिप्रा पार की, तो मैं उसका सामना करूंगी। यदि मैं  युद्ध में हार भी गई तो इतिहास यह नहीं कहेगा कि पुरुष का मैंने वीरता से सामना किया, लेकिन आप जीत गए तो लोग यही कहेंगे कि महिला सेना को हराकर जीत का क्या अर्थ।

देवी अहिल्याबाई के बुलंद हौंसले, रणनीति, दृढ़ संकल्प, दुश्मन के मन में भय पैदा करने का साहस, इस कूटनीति चाल का परिणाम यह हुआ कि राघोबा युद्ध किए बिना ही लौट गया। देवी अहिल्याबाई ने लोक कल्याणकारी राज्य व्यवस्था को साकार रूप दिया। उनका शासनकाल बहुमुखी विकास का स्वर्णिम काल था।

नगर की स्वच्छता के लिये उनके राज्य में अर्थ दंड था। हिसाब में दोषी पाये जाने पर उन्होंने अपने पति को भी अर्थ दंड दिया। छोटे से छोटे अपराध के लिये उनके राज्य में न्याय दंड भी था।

होल्कर राज्य की इस राज वधू देवी अहिल्याबाई  के कार्य और त्याग प्रेरणादायी और अनुकरणीय है। इस राजवधू ने संपूर्ण भारत वर्ष में अपने स्वयं के धन से (राज्य कोष के धन से नहीं) मानव सेवा, दान-धर्म, संस्कृति स्थापन, विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त तीर्थ-स्थलों का पुनर्निर्माण, नव निर्माण कार्य, प्रकृति संरक्षण – जल संरक्षण, संवर्धन तथा जल आपूर्ति , छायादार एवं फलदार वृक्षारोपण, किसी भी समस्या के  निराकरण और देश सुरक्षा के जो भी कार्य किये हैं वे सब स्तुत्य है।

नारी एक थी – कार्य अनेक क्षेत्रों में किये। वे भगवान शिव को  साक्षी मानकर अपने सभी कार्य करती थी। उन्होंने ‘कर्मक्षेत्र’ को अपना ‘धर्मक्षेत्र’ बना लिया था।

जीवन के कष्टों और संघर्ष में रहते हुए बालिका से बनी भार्या, सूबेदार,शासिका, राजमाता, सैन्य संगठिनी, प्रजासंरक्षिणी, प्रजाहितधर्मिणी, प्रजाहितकारिणी नारी शक्ति का इससे जीवंत, ज्वलंत, दिव्य उदाहरण और क्या हो सकता है!

हे मातृ‌शक्ति रूप आकार, तुमने गढ़े कई नव रूपाकार;
किया जन्म-जीवन को साकार, तुमसे धन्य हुआ संसार।

सत्यं शिवं सुन्दरम की देवी अहिल्याबाई होल्कर के चरणों में नमन।

– सुमन कोचर, इन्दौर

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